Kullu: लंका दहन के साथ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा संपन्न, 372 साल पुरानी परंपरा के साक्षी बने हजारों लोग

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Kullu: लंका दहन के साथ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा संपन्न, 372 साल पुरानी परंपरा के साक्षी बने हजारों लोग।भगवान रघुनाथ ने दशहरा के अंतिम दिन लंका पर चढ़ाई की। लंका पर चढ़ाई करने के लिए भगवान रघुनाथ अपने रथ में सवार हुए। 372 सालों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करने के बाद अन्य भगवान रघुनाथ पालकी में अपने देवालय सुल्तानपुर के लिए रवाना हुए। लंका दहन में करीब तीन दर्जन देवी-देवताओं ने भी लाव-लश्कर के साथ हिस्सा लिया। इससे पहले लंका दहन के लिए देवी-देवताओं का भगवान रघुनाथ के अस्थायी शिविर के पास 3:30 बजे देवताओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ।

सभी देवता अपने-अपने निधार्रित स्थानों पर ही बैठे रहे। जैसे ही भगवान रघुनाथ अस्थायी शिविर से निकलकर रथ की ओर चले तो ..जय श्रीराम, ..जय सिया राम, …हर हर महादेव के जयकारे गूंज उठे। भगवान रघुनाथ को रथ में बिठाया गया। शाम करीब चार बजे लंका दहन से पहले सभी रस्मों को पूरा करने के बाद जैसे ही रथ आगे बढ़ा तो सबसे पहले माता हिडिंबा ढालपुर मैदान के एक छोर की तरफ बढ़ी। माता हिडिंबा की लंका दहन में अहम भूमिका रहती है। अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ के रथ को खींचने के लिए सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमडी। बारिश के बावजूद भगवान रघुनाथ की शान में कोई कमी नहीं आई। 1650 को अयोध्या से लाए भगवान रघुनाथ के बाद से दशहरा उत्सव मनाया जा रहा है।

बारिश ने डाला खलल, पांच घंटे देरी से देवालय लौटे देवता
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में शरीक हुए सैकड़ों देवी-देवता अपने देवालय की ओर कूच कर गए हैं। सोमवार रात से लगातार जारी बारिश के कारण दूरदराज के देवी-देवता पांच घंटे देरी से देवालय के लिए लौटे। अमूमन बंजार, सैंज और बाह्य सराज के देवी-देवता दशहरा के आखिरी दिन सुबह 7:00 बजे से अपने देवालय के लौटना शुरू हो जाते हैं। इस बार बारिश के कारण देवता दोपहर 12:00 बजे के बाद अपने अस्थायी शिविरों से लौटे हैं। देवलू सुबह से ही मौसम साफ होने के लिए अस्थायी शिविरों में इंतजार करते रहे। सात दिन तक देवलोक में तबदील रघुनाथ की नगरी अब देवताओं के बिना सूनी पड़ गई है।

दशहरा के समापन के बाद 250 से अधिक देवी-देवता अपने देवालय की तरफ ढोल-नगाड़ों की थाप पर कूच कर गए। देवालय लौटने से पहले देवताओं ने भगवान रघुनाथ से भी मिलकर अपने सुख-दुख को साझा किया और अगले वर्ष फिर आने का वादा किया। कई देवी-देवताओं ने रवानगी से पूर्व भगवान रघुनाथ को सम्मान सहित उनके देवालय रघुनाथपुर तक पहुंचाया। देवी देवता कारदार संघ के पूर्व अध्यक्ष दोत राम ठाकुर ने कहा कि एक हफ्ते तक देवलोक में बदली रघुनाथ की धरा अब अगले साल तक के लिए सूनी पड़ गई है।

http://dhunt.in/Dd9Tl?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “अमर उजाला”

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