Electricity Board : कभी सरकारों को लोन देने वाला बिजली बोर्ड अब खुद कर्ज की चपेट में

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Electricity Board : कभी सरकारों को लोन देने वाला बिजली बोर्ड अब खुद कर्ज की चपेट में। राजनीतिक लाभ लेने के लिए प्रदेश में फ्री बिजली देने की घोषणाओं से लगने लगे झटके, अब कर्मचारियों को वेतन देने के भी पड़े लाले।

कभी सोने की चिडिय़ा कहा जाने वाला और सरकारों को लोन तक मुहैया करवाने वाला हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड (एचपीएसईबीएल) वित्तीय घाटे को लेकर सुर्खियों में आ गया है। घाटा ऐसा कि सरकार की ओर से आई 111 करोड़ की सबसिडी के बाद बोर्ड अपने कर्मचारियों के वेतन की अदायगी कर पाया। इसके अलावा बोर्ड पर 1500 करोड़ से अधिक का लोन भी बताया जाता है। अब नौबत यहां तक आ गई है कि विद्युत बोर्ड को अपने खर्च पूरे करने के लिए अगले साल से बिजली की दरें 90 पैसे प्रति यूनिट बढ़ाने जैसा कदम उठाने का निर्णय लेना पड़ रहा है। यही नहीं, शिमला स्थित बिजली बोर्ड के हैडक्वार्टर कुमार हाउस से फरमान जारी करने पड़े हैं कि बिलों की वसूली सही तरीके से न करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों पर एक्शन लिया जाएगा। हालांकि बोर्ड के घाटे की कई वजह सामने आ रही हैं, लेकिन इस वक्त सबसे बड़ी वजह राजनीतिक लाभ लेने के लिए 125 यूनिट बिजली फ्री देने की बात दिख रही है। प्रदेश में मौजूदा समय में लगभग 14 लाख ऐसे उपभोक्ता बताए जाते हैं, जिनका शून्य बिल आ रहा है।

विद्युत नियामक आयोग, जोकि बिजली के टैरिफ तैयार करता है, के अनुसार हिमाचल प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (एचपीपीसीएल) जो बिजली जनरेट करता है, उसका खर्च प्रति यूनिट अढ़ाई रुपए के करीब बैठता है। हिमाचल प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन लिमिटेड (एचपीपीटीसीएल) जोकि विद्युत बोर्ड तक बिजली पहुंचाता है, उसका लगभग खर्च तीन रुपए के करीब आता है। बिजली बोर्ड ने उपभोक्ताओं को घर-घर विद्युत पहुंचाने का खर्च चार रुपए 25 पैसे निर्धारित किया हुआ है। हालांकि पहले इसमें सवा तीन रुपए सरकार सबसिडी देती थी। उपभोक्ता सिर्फ एक रुपए प्रति यूनिट का खर्च वहन करता था। आज के समय में उपभोक्ताओं को आउटसोर्स के माध्यम से बोर्ड जो बिल डिस्ट्रीब्यूशन बोर्ड करता है, उसमें पांच से छह रुपए का खर्च बैठता है। कुल मिलाकर यह खर्च लगभग 15 रुपए है। उस हिसाब से 125 यूनिट तक, जिसका बिल शून्य आ रहा है, उसका खर्च 1875 रुपए के आसपास आता है। यूनिट कम होंगे, तो यह थोड़ा और कम हो सकता है। अब ऐसे 14 लाख उपभोक्ता इस समय 125 यूनिट वाली कैटेगिरी में आ रहे हैं। बोर्ड को हर महीने वर्किंग मुलाजिमों और पेंशनरों को अदायगी के लिए 180 करोड़ के लगभग बजट की जरूरत पड़ती है। उधर, कर्मचारी यूनियनों ने इसका विरोध करना भी शुरू कर दिया है, क्योंकि जो हालात बनने लगे हैं, उससे ऐसा लग रहा है कि आने वाले समय में मुलाजिमों के वेतन पर संकट आ सकता है। (एचडीएम)

बिजली बोर्ड के और भी कई तरह के खर्चे

जनता को दिए जाने वाले इस 125 यूनिट के उपहार के अलावा बोर्ड के अपने भी खर्चे हैं। टीमेट से लेकर एमडी तक बोर्ड के 17 से 18 हजार कर्मचारी व अधिकारी बताए जाते हैं। इनके अलावा पेंशनर अलग से हैं। खर्चे कम करने की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। राजनीतिक लाभ लेने के लिए काफी संख्या में नए बिजली कार्यालय खोल दिए गए हैं। मैटिरियल मैनेजमेंट में मिसमैनेजमेंट सामने आ रही है। फील्ड का वर्किंग स्टाफ कम हो रहा है और उच्चाधिकारियों की फौज बढ़ती जा रही है। हालांकि होना यह चाहिए कि जो वर्किंग स्टाफ है, उसे ही मैनेज करके उनसे काम लिया जाए।

300 यूनिट फ्री बिजली कर देगी कंगाल

अभी तो 125 यूनिट बिजली फ्री दी जा रही है और 14 लाख के लगभग उपभोक्ता लाभ ले रहे हैं। कांग्रेस ने तो इस बार अपने चुनावी मेनिफेस्टो में 300 यूनिट बिजली फ्री देने की बात कही है। अगर कांग्रेस सत्तासीन हुई तो इससे अधिक उपभोक्ता इसके दायरे में आएंगे। ऐसे में स्वयं ही अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में बोर्ड की हालत कैसी होगी। बुद्धिजीवी वर्ग की मानें, तो जब वर्षों पहले लोगों के पास आय के साधन कम थे या नहीं थे, उस वक्त फ्री वाला सिस्टम सही कहा जा सकता था, लेकिन आज केवल राजनीतिक लाभ के लिए यह निर्णय प्रदेश और बिजली बोर्ड के लिए न्यायसंगत नहीं लगता।

Source : “Divya Himachal”

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